बरखा दत्त या दलाल दत्त !!! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 21 नवंबर 2010

बरखा दत्त या दलाल दत्त !!!

1965 के भारत पाकिस्तान युद्व के दौरान दिल्ली के हिंदुस्तान टाइम्स के एक युवा रिपोर्टर ने सीमा पर जा कर रिपोर्टिंग करने की अनुमति मांगी। तब तक पत्रकारिता में ऐसे दिन नहीं आए थे कि लड़कियों को खतरनाक या महत्वपूर्ण काम दिए जाएं। रिपोटर प्रभा दत्त जिद पर अड़ी थी। उन्होंने छुट्टी ली, अमृतसर में अपने रिश्तेदारों के घर गई, वहां सैनिक अधिकारियों से अनुरोध कर के सीमा पर चली गई और वहां से अपने आप रिपोर्टिंग कर के खबरे भेजना शुरू कर दी। लौट कर आईं तब तो प्रभा दत्त सितारा बन चुकी थी।


प्रभा दत्त दुनिया से बहुत जल्दी चली गई। ब्रेन हैमरेज से एक दिन अचानक उनकी मृत्यु हो गई। आज कल की युवा पीढ़ी के लिए आदर्श मानी जाने वाली बरखा दत्त जो एनडीटीवी का पर्यायवाची मानी जाती है और कम उम्र में ही पद्म श्री प्राप्त कर चुकी है, इन्हीं प्रभा दत्त की बेटी है। प्रधानमंत्री से ले कर प्रतिपक्ष के नेता तक और देश विदेश के बडे बड़े लोगों तक बरखा दत्त की पहुंच हैं।


मगर बरखा दत्त ने अपने प्रशंसकों और कुल मिला कर भारतीय पत्रकारिता को शर्मिंदा कर दिया है। उन्होंने एक तरह से इस बात की पुष्टि की है कि भारतीय पत्रकारिता में राजनेताओं और कॉरपोरेट घरानों की दलाली करने वाले काफी सफल पत्रकार माने जाते हैं और खुद बरखा दत्त भी उनमें से एक हैं। टीवी और प्रिंट के जाने माने और काफी पढ़े जाने वाले पत्रकार वीर सांघवी का नाम भी इसमें शामिल हैं और सांघवी के बारे में जो टेप मिले हैं उसमें सुपर दलाल नीरा राडिया के कहने पर सांघवी अनिल अंबानी के खिलाफ और मुकेश अंबानी की शान में अपना नियमित कॉलम लिखने के लिए राडिया से नोट्स लेते सुनाई पड़ते है। मगर वीर सांघवी के बारे में पहले भी इस तरह के पाप कथाएं कही जाती रही है।


नीरा राडिया और राजा प्रसंग जब आया था तो पहले भी बरखा दत्त का नाम आया था। लेकिन अब तो हमारे पास वे टेप आ गए हैं जिनमें नीरा राडिया और बरखा दत्त मंत्रिमंडल में कौन कोन शामिल हो और उसके लिए कांग्रेस के किस नेता को पटाया जाए, इस पर विस्तार से बात करते नजर आ रहे है। बरखा दत्त जिस तरह बहुत डराने वाली आत्मीयता से प्रधानमंत्री से ले कर कांग्रेस के बड़े नेताओं के नाम ले रही हैं और यह भी कह रही हैं कि उनसे काम करवाने के लिए उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, उसी से जाहिर होता है कि बरखा और इन नेताओं के रिश्ते पत्रकारिता के लिहाज से संदिग्ध और आपत्तिजनक हैं।


सारा झमेला उस समय का है जब मंत्रिमंडल बन रहा था और खास तौर पर ए राजा और टी आर बालू के बीच में अंदाजे लगाए जा रहे थे कि कौन रहेगा और कौन जाएगा? इन्हीं टेप के अनुसार राडिया ने ही राजा को सूचना दी थी कि आपका मंत्री बनना पक्का हो गया है। बरखा और राडिया इस बातचीत में जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद को बहुत लाड से या अपनी आत्मीयता दिखाने के लिए गुलाम कहती है और प्रधानमंत्री के साथ कौन सा नेता किस समय मिलने पहुंचा और किस समय निकला, इसकी पल पल की जानकारी उनको होती है, यह चकित नहीं करता बल्कि स्तब्ध करता है। आखिर यह देश और इसका लोकतंत्र क्या वाकई सिर्फ दलाल चला रहे हैं। इन दलालों की कहानी में बरखा जैसे ऐसे लोग भी जुड़ गए हैं जिनका नाम अब भी पत्रकारिता के कोर्स में बड़ी इज्जत से दर्ज है।


चालीस साल की हो चुकी बरखा दत्त ने शादी नहीं की। उनके पास एनडीटीवी में शो करने और करवाने के अलावा बहुत वक्त है जिसमें वे राडियाओं और राजाओं की दलाली कर सकती है। कनिमोझी को बरखा कनि कह सकती है और दयानिधि मारन को दया कह कर बुला सकती हैं तो जाहिर है कि अंतरंगता के स्तर क्या रहे होंगे। प्रधानमंत्री अगर करुणानिधि की मांगों पर नाराज होते हैं तो यह बात बरखा को सबसे पहले पता लगती है।


करुणानिधि अगर अपने परिवार के तीन सदस्यों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करवाने के प्रति संकोच में पड़ जाते हैं और टी आर बालू के बयानों पर मनमोहन सिंह करुणानिधि से शिकायत करते है तो यह भी सबसे पहले बरखा को ही पता लगता है। बरखा तो नीरा राडिया को यह भी बता देती है कि किसको कौन सा मंत्रालय मिलने वाला है। अब या तो बरखा महाबली है या हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत ही कायर और रसिया किस्म के आदमी है जो छम्मक छल्लो की तरह इठलाने वाली बरखा को सबसे पहले अपने राजनैतिक रहस्य बताते हैं। बरखा उन रहस्यों को कैश करवा लेती है।


ऐसा नहीं कि भारतीय लोकतंत्र में नेता पत्रकारों का इस्तेमाल नहीं करते रहे। जवाहर लाल नेहरू तक शाम लाल और कुलदीप नायर तक से दूसरों के बारे में सूचनाएं मंगाते थे और दक्षिण भारत की चर्चित पत्रिका तुगलक के संपादक चो रामास्वामी आज भी दक्षिण भारत के लिए चाणक्य से कम नहीं माने जाते। करुणानिधि और जयललिता दोनों उनसे सलाह लेते है।


बरखा दत्त के बारे में जान कर और सुन कर हैरत इसलिए होती हैं और शोक सभा मनाने का मन इसलिए करता है कि बरखा को नई पीढ़ी की आदर्श पत्रकाराेंं में से एक माना जाता रहा है और कारगिल युद्व से ले कर बहुत सारी दुर्घटनाओं को बहुत बहादुरी से कवर किए जाते उन्हें देखा गया है। पद्म श्री देने के लिए बरखा ने सुनामी की त्रासदी का जो कवरेज किया था उसी को आधार बनाया गया।


इतने शानदार सामाजिक सरोकारों से जुड़ी बरखा दत्त अगर सीधे सीधे और सबूतों के आधार पर दलाली करती नजर आएंगी तो वे सिर्फ अपने प्रशंसकों को ही नहीं, बल्कि उस पूरे समाज को आहत करती दिखाई पड़ रही हैं जिसे एक बार फिर अपने नायकों और नायिकाओं पर भरोसा हो चला था। बरखा ने और वीर सांघवी ने यह भरोसा तोड़ा है। नीरा राडिया का क्या, वह तो दलाल थी ही और आज भी है और दलालों का कोई चरित्र होता हो यह कभी नहीं सुना गया। बरखा दत्त की बोलती बंद हो गई है। टेप सरकारी है। अब एक बड़ा तबका राजा और मनमोहन सिंह से निपटने के लिए इन्हे मीडिया तक पहुंचा रहा है। टेप सत्तर घंटे के आस पास के हैं और पता नहीं अभी कितने दलालों के नाम सामने आएंगे।



---आलोक तोमर---
डेट लाइन इंडिया

4 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

लोकतंत्र क्या वाकई सिर्फ दलाल चला रहे हैं...
यहां पर क्या की आवश्यकता है..

विवेक रस्तोगी ने कहा…

अब टीवी मीडिया क्या कहता है इसका इंतजार है, जनता का तो क्या कहें जो दिखता है वह बिकता है।

मैंने आजतक कितनी रिश्वत दी उसका हिसाब (जितना याद आया

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

क्या कहें?
कुछ बस ही नहीं चलता हम जैसों का, सारे तंत्र का अपहरण हो गया है!

anshumala ने कहा…

पत्रकारों की सत्ता की नजदीकियों का पता तो धीरे धीरे सामने आ रहा था लेकिन ये नजदिकिया इस हद तक है इसका पता नहीं था |